Thursday, July 7, 2016

Destiny

पत्ते झड़ रहे हैं और किरणें जो पेड़ो के पत्तों से छन के आती थी वो अब किरणों की तरह नही आती
पूरा सॉफ सॉफ दिखता है और वो छोटे छोटे कन अब उन किरणों में दिखाई नही देते
शुरू शुरू में कुछ पत्ते टूटकर जब ज़मीन पर गिरे तो ये कोई बड़ी बात ना लगी
टूटे हुए पत्तों को उठाया और फिर चूल्‍हे में डाल दिया
सूखे पत्ते तो बड़ी तेज लहक में जलते थे और बड़ा मज़ा आता था उनकी तेज आग देखकर
मगर जब हरे पत्ते को आग में डालना पड़ता था तो बहुत धुआँ उठता था
आंकों में आसू आ जाते और हाथ को पंखा बनाकर उस धुएें का मुख मोड़ने की कोशिस करते थे
खैर पत्ते ही थे, जल ही जाते थे
धीरे धीरे जब नीचे के डाल के पत्ते गिरने लगे और किरणों की वो कतारें गायब होने लगी तो थोड़ी सी चुभन हुई
लगने लगा की शायद ये गायब ही ना हो जायें, कहीं वो छन छन कर आने वाली किरणें विलुप्त ना हो जाए.
प्रकाश तो फिर भी आएगा, उज़ला तो वैसा ही होगा मगर फिर भी एक दर बैठने लगा
धीरे धीरे वो काल्पनिक भय एक स्थाई स्वरूप लेने लगा
चन्द बरसों में मन नें मान लिया की किरणें तो गायब हो जाएँगी
अब कितना सोचो, सोचने में क्या रखा है.