Saturday, October 15, 2016

ज्ञान !

दुखी छी कि खुशी छी
बड मुश्किल अछि इ बुझनाई
क्खनो लगै य किछु छुटी गेल,
आ कखनो लगईय भेनैह गेल।
बड लोग अछम्भित भेल, गामक गाम अवाक भ गेल
ककरो नोर नै खसलै, मुँह खुललै मुदा करेज नै फटलै।
बाद में सोचलई, धीरे धीरे भजीयेलीयै,
मनुखक़ शोक दु तरह्क होति अछि - एकटा त समजिक आ एकटा व्यक्तिगत्।
सामाजिक दुखक एकटा पह्लु सेहौ बुझलौँ,
जे सबहक़ शोक से ककरो नै।
तँय लग़ैऽय जे अवाक त सब भेल मुदा अवाके टा भेल,
के अपन के आन सब खालि झुठक़ बखान।
तहन, बुझीयो क की करबै, ककरा क़हबै आ की की कहवै।
तहन त हम अपसीयाँत, जे झाँपल भात झपले खाई,
मुदा तुलसी अहि सन्सार में भाँति भाँति के लोग, ऑ
तथाकथित शुभचिंक सब लगला, खोंइचा उदारऽ।
पुरा प्रक्रन में एकटा बात ऑर सिखलऔं जे, मोनक बात मोने राखी,
कियो किछ्हु कहय मुदा ख़ुशी छी की दुख़ी छी से नै वाज़ी

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