Tuesday, November 28, 2017

भोज

भोज

बड़का मालिक मड़ला, ढोल पिपही सने लोग कटिहारी गेल
मण्डली भेलै, गामक गाम नोतल गएल, िस्तरंगने पुरखे नोत पड़लै
पूरी जिलेबी के भोज भेलै, दःही त छछरह पिछरह भ गेलै.
के कुक्कुर आ के सोल्हकन, सब पात चायट चायट क नेहाल भ गेल.
जायँ पहिल तोजी ख़तम भेलै की छोटका लोकक धिया पुता की पूछहु गड़ुआडो कनिया सब चली ेलै.
यौ मालिक हमरो सब के दिय ा, हमरो सबमें बाइंट दिय ा, झाूँ  झाूँ  सब कर लगलै
पुरहित कहलखिन हे भागै जाइ जो, जेहो धर्म अच्छी सेहो सबटा नांश करमय ा
माटर सहाब दयालु निकलला,
कहलखिन हे धिया पुता सब, सौंसे सौंसे जिलेबी छौ पड़ल पात पर,
एखने हजमा फेकलकै य ईनारक कात में, जो जाकक उठा ले लोटा में,
आ देखइहाँ जे कुक्कुर हौ त ओकरो रोइम दीहें.
अउ बाबू आब की पुछु, सौंसे दालान भड़ी गेल, बड़का भीड़ लागि गेल .
छोटका लौकिक उठम पटका में सबटा पुआरक  बिड़िया छिड़िया गेल.
कहुंनाक ा माल जाल जकाँ रोइम क हटेला मुखिया, सोल्हकनमाँ सबके ईनार लग सॅ.
एतबी काल में कियो कियो त काना फुंसी सेहो कर लागल, केना पीब आब ऐ ईनार के पैन.
महंत बजला जे पीबै के त बात छोड़ू कुरुरो आचमन केना करब.
सुनी लेलखिन छोटका मालिक, गेलखिन खिसिया मास्टर पड़,
कहलखिन बाबू के रहैत कियो सोल्हकन ईनारक चबूतरा में नै सटल.
पुरहित बीच बचाब केला, मामला शांत भेल.
दोसर तोजी लोक बैसल, फेर सॅ बारीक सब शुरू केला बटनाइ राम दू तीन...
तेसर पांत में भोले कहलखिन, हमर भगिन ये अहि ठाम बगल में बैसल अछि, संकोची अछि माँगत नई.
कलकत्ता में रहि य, मालिक दिया सुनलकन त दू दिन लय आबि गेल, कमें काल अबै य,
बारीक सौंसे जिलेबी उझेळ देल्हखइन, पातक दही जिलेबीमय भल गेल,
ककरो भागिन, ककरो चीज, बारीक अंदरे अंदरे पिघैल गेलखिन.
 सोल्हकनमाँ टोलक धिया पुता सब बानरक सेना जँका छहरदेवाड़ी पर लटकल रहय,
दोसर तोजी कखन ख़तम हेतै बाट तकैत रहय.
मल्कीएन अंगना सॅ समाद देलखिन, छोटका मालिक गेला भराड़ में.
मुखिया के बजौला आर बारीक सब लए समाद कहलखिन.
मुखिया जोड़ सॅ हुड़केलकै
आ बारीक सब हाथ समेटलक, भगिनो के भतीजा बनेलक.
जेना जेना पात क पात सफा चट होती गेलै, छहरदेवाड़ी पर बैसल छोटका लोकक धिया पुता के हृदय बैसैत गेलै.
पहिल तोजिक जोश में अढ़िया आनि लेने रहय सब,
अहि तोजी में त गिलासो भर ा के इंतजाम नै रहै.
जिलेबीक तृष्णा में एकटा अगत्ती बच्चा कुक्कुरे संगे उठाम पटका कर लगलै.
बाबरी सीटैत मालिक पोता के धयान भंग भेलें, हां हां कुक्कुर काइट लेते, इंजेक्शन दियाब पडतै कहैत दौरला ईनार दीस.
लाले के लगलैन हंसी, कहलखिन छोटे साहब,
अकरा सब के देह में सांप क बिख रहे छै, कुक्कुर की करतै,
आउ इम्हर इजोत में बैसू नै त अनेरो पैर पिछैर जायत.
कृष्ण पक्ष के अन्हरिया में सब मारलक ठहाका दालान पर .
पुरहित कहलखिन, जहिना बड़का मालिक जश में जीला तहिना जश में गेला!
कुक्करक डकार सेहो लगलै जे बात के पुष्टी क देलकै. 

Friday, November 3, 2017

YOU....!

I am grateful, I am so grateful
For taking care of me, for taking care of my life
I am thankful, I am so thankful.
For tolerating me for so long, for managing with all my nuisance,
I may not have done enough, I may not have expressed enough,
But you are my life, you are my ultimate source of happiness.
I may frown upon you, I may shout at you for even my own mistakes;
I may hurt you, I may hurt your feelings;
I don’t have a justification, I cannot have a justification,
But I have one confession, it was never intentional,
It was never to drive you away, it was never from any sense of superiority.
I knew I needed you, you didn’t need me
I knew I would be lonely, I knew I would be left with nothing
I hope you forgive me like you always do.
Whatever I am good or bad, nice or rude
I am yours and truly yours!
Al the twilight of my life, if granted a wish for one thing, only one thing;
I want to have you next to me, when I leave this world
I would wish for your hands in my hands, your eyes to see my own image
I would wish for your company, and only yours!
My life was like some drifting clouds, and it is still like a drifting cloud
But this cloud has company, and you helped me find a purpose in this drift
I know I drifted long time back, I saw it happening, happening in front of my eyes
I know, I let it go.
I am still happy, very happy and so my dear

I am thankful, very thankful!

Saturday, October 15, 2016

Values

Beautiful lies, convenient questions,
self praise, mutual admiration - values of time!
We are all winners!
Winners take it all and losers move on!
That's about life and life is beautiful.
Sincerity  at sale and impact on offer,
we borrow credit, not always known to lenders.
We help others, if it is for us - values of time!
Planned surprises and only pleasant,
Enough opportunities for opportunists,
life is not fair but then who says it is!   

ज्ञान !

दुखी छी कि खुशी छी
बड मुश्किल अछि इ बुझनाई
क्खनो लगै य किछु छुटी गेल,
आ कखनो लगईय भेनैह गेल।
बड लोग अछम्भित भेल, गामक गाम अवाक भ गेल
ककरो नोर नै खसलै, मुँह खुललै मुदा करेज नै फटलै।
बाद में सोचलई, धीरे धीरे भजीयेलीयै,
मनुखक़ शोक दु तरह्क होति अछि - एकटा त समजिक आ एकटा व्यक्तिगत्।
सामाजिक दुखक एकटा पह्लु सेहौ बुझलौँ,
जे सबहक़ शोक से ककरो नै।
तँय लग़ैऽय जे अवाक त सब भेल मुदा अवाके टा भेल,
के अपन के आन सब खालि झुठक़ बखान।
तहन, बुझीयो क की करबै, ककरा क़हबै आ की की कहवै।
तहन त हम अपसीयाँत, जे झाँपल भात झपले खाई,
मुदा तुलसी अहि सन्सार में भाँति भाँति के लोग, ऑ
तथाकथित शुभचिंक सब लगला, खोंइचा उदारऽ।
पुरा प्रक्रन में एकटा बात ऑर सिखलऔं जे, मोनक बात मोने राखी,
कियो किछ्हु कहय मुदा ख़ुशी छी की दुख़ी छी से नै वाज़ी

Thursday, July 7, 2016

Destiny

पत्ते झड़ रहे हैं और किरणें जो पेड़ो के पत्तों से छन के आती थी वो अब किरणों की तरह नही आती
पूरा सॉफ सॉफ दिखता है और वो छोटे छोटे कन अब उन किरणों में दिखाई नही देते
शुरू शुरू में कुछ पत्ते टूटकर जब ज़मीन पर गिरे तो ये कोई बड़ी बात ना लगी
टूटे हुए पत्तों को उठाया और फिर चूल्‍हे में डाल दिया
सूखे पत्ते तो बड़ी तेज लहक में जलते थे और बड़ा मज़ा आता था उनकी तेज आग देखकर
मगर जब हरे पत्ते को आग में डालना पड़ता था तो बहुत धुआँ उठता था
आंकों में आसू आ जाते और हाथ को पंखा बनाकर उस धुएें का मुख मोड़ने की कोशिस करते थे
खैर पत्ते ही थे, जल ही जाते थे
धीरे धीरे जब नीचे के डाल के पत्ते गिरने लगे और किरणों की वो कतारें गायब होने लगी तो थोड़ी सी चुभन हुई
लगने लगा की शायद ये गायब ही ना हो जायें, कहीं वो छन छन कर आने वाली किरणें विलुप्त ना हो जाए.
प्रकाश तो फिर भी आएगा, उज़ला तो वैसा ही होगा मगर फिर भी एक दर बैठने लगा
धीरे धीरे वो काल्पनिक भय एक स्थाई स्वरूप लेने लगा
चन्द बरसों में मन नें मान लिया की किरणें तो गायब हो जाएँगी
अब कितना सोचो, सोचने में क्या रखा है. 

Friday, May 27, 2016

Badlaab

वो कहतें हैं कि देश बदल गया और दशाएं बदल गई
देश और दशा का तो नहीं मालूम नहीं मगर दिशाएं जरूर बदल गयीं
हवाओं ने रुख मोड़ लिए और मौसम मनो खो से गए
सालों भर बसंत सा आ गया जिसका प्रमाण कमरों में रखे फूलों से आती है
बगीचे के फूल तो अब खिलते ही नहीं और अगर कहीं खिल भी जाएँ तो उहें पहचाने कौन !
गरीबों को गर्मी पसंद आती थी मगर गरीब तो कहीं रहे ही नही अगर बचे भी हों तो कहने में शर्म सी आती है।
बहुत बदल गया काफी कुछ बदल गया।
शहर की बत्तियों पर अब भीख नहीं मिलता क्यूँकी लोगों ने समझ लिया है की ये भिखमंगे फायदा उठा रहे हैं ,
भीख मांगना गैर क़ानूनी तो पहले से था मगर अब लोगों को बात समझ में आने लगी है।
जिसके भावनाओं को मिटा ना सके उसके अस्तित्व को ही मिटा दिया।
आखिर बदलाब तो लाना ही था और बदलाब में कुछ तो बदलेगा।
प्रजातांत्रिक परंपरा व्यवस्था को दीर्घायु भले ही कर दे मगर शाशकों के लिए तो अल्पायु ही लाती है ,
इतिहास ही नहीं वर्तमान भी गवाह है अब तो की मध्यमवर्गीय समाज ना तो इसका होता है ना ही उसका,
उसके लिए तो बस अर्थ का ही अर्थ रह गया है , और अब तो ये बात विकसित समाज की सूचक हो गयी है।
बदलाब के सूत्रधारों ने इस मध्यम वर्ग का साथ लेकर उपभोक्तावादी व्यवस्था को  लोकतंत्र का जामा पहनाया है,
सारे बदलाब हो गए हैं अब तो, बस शाशन की निरंतरता कायम होनी है।
भोजन बस्त्र और आवास ये सब प्राचीन बातें हैं, अब तो visa, net और exchange rate का ही कष्ट रह गया है।
पडोसी जाने ना जाने मगर विदेशी जरुर पहचाने लगे हैं हम सबको।
बदलाब  जो आया है, बदलना तो पड़ेगा ही।
बीते दिनों की बातें भी बेमानी जान पड़ती हैं, कुछ लब्ज निकल भी जाएँ तो शर्मिंदगी सी होती है ,
वो सभाओं में पूछते हैं  'बदला की नहीं बदला' और "बदला" के नारों से गगन गुंजायमान हो जाता है ,
ध्वनि तरंगें  प्रकाश पर अपने विजयश्री की उद्घोषणा करते हैं ,
कल्पनारूपी ज्ञप्ति प्रमाणिक सत्य पर अपनी श्रेष्ठता साबित करती है।
असहमति पिछड़ेपन की निशानी मात्र रह गयी है।
बदलाब जो आया है , बदलाब जो आया है।

Monday, May 2, 2016

Drinking

Maa, do you remember the guy who used to drink so much. Which guy? The guy who drank on his wedding day.. He was so drunk that they could not even make him sit properly on wedding chair. Oh! Yes. Is he still alive, its almost 15 years. Oh my God, you still remember him. Yes, I remembered him! Yes he is alive but he does not drink so much now. Why what happened. Once he dropped his new born daughter and the child became handicapped, he stopped drinking since then. Really? Yes!